बिल गेट्स दुनिया के सबसे अमीर व्यक्तियों की सूची में बहुत लम्बे समय तक शीर्ष पर रहे थे | पर यहाँ तक पहुँचने का रास्ता बहुत लम्बा है , और उनके बचपन से शुरू होता है | मैं 1968 की बात कर रहा हूँ, जब विश्व में कंप्यूटर शब्द भी कुछ ही लोग जानते थे | उस समय इंटरनेट का आविष्कार भी नहीं हुआ था , और कंप्यूटर बहुत ही धीरे चलते थे | पर बिल गेट्स को 13 वर्ष की उम्र में, अपने लेकसाइड हाई विद्यालय में इस नए उपकरण में रूचि हुई | वहीँ पर उन्होंने अपना पहला बेहतरीन प्रोग्राम बनाया , जिसमे आप कंप्यूटर के विरुद्ध Tic-tac-toe खेल सकते हो | यह रूचि इतनी प्रबल थी कि उन्होंने अधिक समय कंप्यूटर चलाने के लिए कुछ शैतानियां भी कीं | कंप्यूटर सेंटर कारपोरेशन ने तो उनपर अपने केंद्र में अंदर घुसने पर भी रोक लगा दी थी | यह इसलिए, क्योंकि वह और उनके तीन मित्र अपनी बुद्धि लगाकर , कुछ कमियों का फायदा उठाकर अपने निर्धारित समय से अधिक समय कंप्यूटर पर काम करते थे |
उन्होंने विद्यालय में जितना ज्ञान था , वह तो अर्जित किया ही, पर उसके साथ अपनी रूचि को लगातार समय दिया | इस रूचि को उनके माता पिता का पूर्ण समर्थन मिला , और उन्होंने बिल को काम करने की स्वतंत्रता दी | उनके पिता एक वकील थे , और इस नए विषय का उन्हें कोई अनुभव नहीं था | फिर भी , उन्होंने अपने बच्चे पर पूरा भरोसा रखा | कभी ” Traf-O-Data “ का नाम सुना है ? यह बिल गेट्स की पहली कंपनी का नाम था | उन्होंने अपने मित्रों के साथ इसपर तीन वर्ष तक कार्य किया, पर अधिक सफलता नहीं मिली और अंततः उन्हें उसे बंद करना पड़ा | लेकिन उसके बाद उन्होंने इस अनुभव से सीखते हुए माइक्रोसॉफ्ट की स्थापना की , और फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा | आज पूरा विश्व उनका नाम जानता है |
मैं इस उदहरण से यह समझाने का प्रयास कर रहा हूँ कि अपनी रुचि के अनुसार हम जब कार्य करते हैं , तो फिर हम उसमें बिना थके अधिक समय लगा पाते हैं | अपनी कमियों पर काम करके धीरे धीरे उसमें पारंगत होते जाते हैं | और भी ऐसे कई उदहारण हैं, जिन्होंने इस उम्र का इस्तेमाल करके अपने हुनर को निखारा, और अपने पेशेवर क्षेत्र में सफल हुए | टेलर स्विफ्ट, मार्क ज़ुकरबर्ग , सेरेना और वीनस विलियम्स की जीवन गाथाएं प्रेरणादायक हैं |
अब हम भारत में लौट आते हैं | हमारे देश में, इस उम्र के बच्चों पर भारी दबाव है | आई.आई.टी , नीट , सिविल सेवा, कैट, गेट, नेट , सी.ए. जैसी परीक्षाओं के लिए लाखों विद्यार्थी तैयारी करते हैं | पर उनमें केवल एक से दो प्रतिशत ही सफल हो पाते हैं |
वर्ष 2023 में कोटा में 26 विद्यार्थियों ने आत्महत्या की थी | इस वर्ष, आठ मार्च तक, छः बच्चे यह कदम उठा चुके हैं (Reference) | अन्य कई विद्यार्थी भयंकर मानसिक तनाव से गुज़रते हैं |
जब बच्चे तैयारी करते हैं, तो उन्हें समझाया जाता है कि इस दौरान अपना पूरा ध्यान इस परीक्षा पर लगा दो | उनके सारे शौक छूट जाते हैं , दोस्तों से मिलने का समय नहीं निकाल पाते | कभी कोचिंग में कम नंबर आ गए तो सीधा उनके घर पर फोन पहुँच जाता है | इतना सब होता है कि बच्चे की रुचि और अरुचि सब समाप्त हो जाती है |
बच्चों को यह पता होता है कि उनके माता पिता ने उनकी पढाई के लिए लाखों रुपये खर्च किये हैं, और यह उनपर अतिरिक्त दबाव डालता है | वे इसलिए इस चक्रव्यूह से बाहर भी नहीं निकलना चाहते , और अपने माता पिता के साथ अपनी परेशानी साझा भी नहीं करते हैं |
कई अभिभावक यह भी सोचते हैं कि अगर उनका बच्चा उस परीक्षा में सफल नहीं भी हो पाया, तो भी तैयारी करने का अनुभव उनको जीवन में आगे बहुत काम आएगा | पर यह काम कब आता है ? जब बच्चा स्वयं तैयारी करना चाहता है और उसने स्वयं ही अपना लक्ष्य निर्धारित किया है | जब लक्ष्य माता पिता का होता है, और बच्चे पर उम्मीदों का बोझ लाद दिया जाता है, तो फिर यह अनुभव जानलेवा हो जाता है | बच्चा आत्मविश्वास खो बैठता है और यह समझता है कि अपने जीवन में वह कभी सफल नहीं हो पायेगा |
जब अभिभावक अपने सारे सपने अपने बच्चों द्वारा पूरे करवाना चाहते हैं , तब वे कभी उनकी आकांक्षाओं को समझने का प्रयास नहीं करते हैं | घर पर स्वीकृति न मिलने के कारण बच्चे बाहर स्वीकृति ढूंढते हैं और गलत आदतों में फँस जाते हैं | शराब, सिगरेट एवं नशीले पदार्थों का सेवन बढ़ने का एक यह भी कारण है | (Reference)
हमारे अंदर तुलना करने की भी बीमारी है | अगर किसी के नब्बे प्रतिशत अंक आये हैं, तो हम चाहते हैं कि हमारे उससे अधिक आएं |किसी दूसरे के बच्चे की सफलता पर अभिभावक अपने बच्चों को ताने सुनाते हैं | यहां हम ज्ञान प्राप्त करने या सीखने से अधिक अंको पर ध्यान देते हैं | “कितने परसेंट आये “, एक आम सवाल है | यह तुलना और ईर्ष्या भी शिक्षा का हिस्सा नहीं होना चाहिए |
This time, I didn’t need your validation.
This time, I was not waiting for approval.
This time, I didn’t consider how many people shared my thoughts and feelings.
I expressed it raw, real, honestly, and as it was in my mind.
It didn’t need to be questioned and rechecked.
It didn’t need overthinking and rethinking.
It was pure and clear.
As I thought, I wrote.
As I felt, I said.
As I believed, I propagated.
And as I stood, I persisted.
हर बच्चे को एक ऐसा वातावरण मिलना चाहिए, जिसमे वह अपनी उत्सुकता से सीख सके | यह पांच वर्ष का समय अत्यंत महत्वपूर्ण रहता है | इस समय में आपको लगातार ढूंढना चाहिए कि आपका झुकाव किस क्षेत्र की ओर है | अगर हम इस प्रकार से अपने हुनर को तराशते हैं , तो फिर हम अपनी आजीविका कमाने के लिए ऐसा कार्य करेंगे जिससे हमें संतुष्टि मिलेगी | भविष्य में, पारम्परिक उपाधियों के महत्व में बदलाव होते हुए दिखेगा | (Reference) यह बदलाव सबसे तीव्र गति से बच्चे ही महसूस करते हैं | अतः ये आवश्यक है कि घरों में बच्चों की बातों पर ध्यान दिया जाए | उनको हर बात पर निर्णय नहीं सुनाया जाए |
आइये , हमारे बच्चों के लिए एक सुरक्षित वातावरण बनाने में सहयोग करते हैं |
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